Business idea: बंजर जमीन भी सोना उगलने लगती है। बल्लभगढ़ के मलेरना गांव के किसान नरेंद्र सैनी इसका बेहतरीन उदाहरण हैं। उन्होंने पारंपरिक तरीके से हटकर नए तरीके से पालक की खेती को अपनाया है, जिससे उन्हें हर सीजन में अच्छा मुनाफा हो रहा है। उनका तरीका इतना कारगर है कि आस-पास के किसान भी इस तरीके को अपनाने लगे हैं।
पालक की खेती के लिए अपनाई गई यह विधि
नरेंद्र सैनी बताते हैं कि गर्मी के मौसम में कल्टीवेटर से खेत की जुताई कर ‘गूल’ (ऊंची क्यारी जैसी संरचना) बनाई जाती है, जिससे पानी की निकासी में मदद मिलती है और फसल की वृद्धि अच्छी होती है। जबकि, सर्दियों में साधारण क्यारी बनाई जाती है, क्योंकि इस समय बारिश कम होती है और फसल को खतरा कम होता है। गर्मियों में बनाई गई गुल ऊंची बनाई जाती है, ताकि अतिरिक्त पानी नीचे चला जाए और फसल खराब न हो।
कल्टीवेटर बनाम रेजर का लाभ
किसान नरेंद्र बताते हैं कि पहले रेजर से गुल बनाकर पालक की बुवाई की जाती थी, लेकिन पालक उसमें इकट्ठा हो जाता था और फैल नहीं पाता था। अब वह कल्टीवेटर की मदद से नाली बनाते हैं, जिससे एक खेत में 8 नाली बनती हैं और पालक आसानी से उगता है। इससे बीज भी अच्छे मिलते हैं और फसल की गुणवत्ता भी बढ़ती है।
कंप्यूटर मांझे से सिंचाई का नया तरीका
सबसे खास बात है उनकी सिंचाई की तकनीक। नरेंद्र कंप्यूटर मांझा बिछाकर सिंचाई करते हैं। इससे पानी एक लेवल पर बहता है और बर्बाद नहीं होता। बीज बोने से पहले खेत को अच्छी तरह से समतल किया जाता है और फिर नक्का (छोटी नाली) बनाई जाती है ताकि पानी नियंत्रित तरीके से बहे। इससे पालक सड़ता नहीं है और उत्पादन भी अच्छा होता है।
कम लागत, मोटा मुनाफा
नरेंद्र के मुताबिक, सर्दियों में 1 एकड़ खेत में करीब 15 किलो बीज की जरूरत होती है, जबकि गर्मियों में यह बढ़कर 30 से 32 किलो हो जाती है। मेहनत तो बहुत करनी पड़ती है, लेकिन मुनाफा भी खूब होता है।
मलेरना गांव के किसान नरेंद्र सैनी जैसे लोग देसी तरीकों, मेहनत और थोड़ी सी सूझबूझ से यह साबित कर रहे हैं कि खेती को घाटे का सौदा नहीं रहने दिया जा सकता। गांव के दूसरे किसान भी उनके प्रयोग से प्रेरित होकर अब पारंपरिक खेती को छोड़कर नई तकनीक अपना रहे हैं।